श्राद्ध तर्पण क्या है और क्यो करना चाहिये ।

श्राद्ध तर्पण क्या है और क्यो करना चाहिये ।

इस विषय पर चर्चा से पहले मैं ये बताना आवश्यक है
श्राद्ध तर्पण को बहुत से व्यक्ति इसे ब्राह्मणों द्वारा प्रचलित कुप्रथा बता ते है ।

हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए, तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। इसलिए पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्धपक्ष का बेहद महत्व है।

ब्रह्म व्रत पुराणों में वर्णित जाकारी के अनुसारपितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

ज्योतिषीय मतके अनुसार जिस तिथि में माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों का निधन होता है। इन 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है !

ब्राह्मण भोजन से पहले मान्यता है कि
कहा जाता है कि कौवे व अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को सही मायने में भोजन प्राप्त होता है, क्योंकि पक्षियों को पितरों का दूत व विशेष रूप से कौवे को उनका प्रतिनिधि माना जाता है

बहुत से व्यक्ति बहुत दीन – हीन हालत में होते है वो चाहते हुए भी कोई विशेष पकवान बनाने में असमर्थ होते है
निर्धन व्यक्ति जो नाना प्रकार के पकवान बनाकर अपने पितरों को विशेष भोजन अर्पित करने में सक्षम नहीं हैं, वे यदि मोटा अनाज या चावल या आटा और यदि संभव हो तो कोई सब्जी-साग व फल भी यदि पितरों को प्रति पूर्ण आस्था से किसी ब्राह्मण को दान करता है तो भी उसे अपने पूर्वजों का पूरा आशीर्वाद मिल जाता है

यदि किसी व्यक्ति को यदि माता-पिता, दादा-दादी इत्यादि किसी के निधन की सही तिथि का ज्ञान नहीं हो तो इस पर्व के अंतिम दिन यानी अमावस्या को सभी का श्राद्ध तर्पण किर्या करके पितरों का आशीर्वाद ग्रहण करे।

पितृ पक्ष में हर दिन सुबह और शाम को जब भी घर पर रोटी बने पहली रोटी गाय को निकालकर अलग कर देना चाहिए!!

पिंड दान करने वाले व्यक्ति कोश्राद्ध पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए!!

जिन व्यक्तियों के कुंडली मे पित्र दोष है उनको —
पितृ पक्ष में हर दिन पीपल के पेड़ पर कच्चा दूध के साथ जल मिलाकर चढ़ाना चाहिय

मान्यता है कि इस प्रकार विधि विधान से श्राद्ध पूजा कर जातक पितृ ऋण से मुक्ति पा लेता है व श्राद्ध पक्ष में किये गये उनके श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं व आपके घर परिवार व जीवन में सुख, समृद्धि होने का आशीर्वाद देते हैं।

मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी ही बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है।

पत्नी न हो तो कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध किया जा सकता है

इसके अलावा अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि परिवार और कुल में कोई पुरुष न हो तो सास का पिंडदान बहू भी कर सकती है ।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा

ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है

अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है।
इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है।
इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध, तर्पण कर सकती है।

तर्पण विधी:-
हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें

पितामह को भी 3 बार जल दें
माता का ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है।जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार देंजितनी बार माता को जल दिया है
उसी तरह दादी को भी जल दें।

श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे अधिक है इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव जरूर रखें। श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। अगर श्राद्ध भाव ना हो तो पितर उसे ग्रहण नहीं करते हैं